बैठकजी गोपी तालाब के किनारे पर स्थित हे। श्रीमहाप्रभुजी पीपल के वृक्ष के छांव में बिराजे. आपश्री के सेवक कृष्णदासजीने प्रश्न किया," प्रभु यदि गोपिया व्रज छोड़ कर कही गई नहीं , तो फिर इस भूमिका नाम गोपी तालाब क्यों पडा ", और यहाँ की रेनू को गोपी चन्दन क्यों कहते हे। ". गोपी सब्द का प्रयोग क्यों किया गया हे".
उत्तर देते श्री आचार्यजी बोले, "भगवान कृष्ण जब द्वारका निवास कर रहे थे, तब श्री रुकमणीजी के आगे आपने गोपियों की प्रसंसा की, तब रानी रुकमणीजी इर्षावश बोली , "में आपकी पटरानी हु, और आपकी सदा सेवा और आज्ञा में रहती हु , तो फिर आप गोपियोंकी बड़ाई क्यों कर रहे हो”.
उत्तर देते श्री कृष्ण बोले ,"आप सही कहतीहो रुकमणी, गोपीजनके तुल्य कोई नहीं हो सकते, आपभी नहीं। क्योकि ब्रजमें जब शरदपूर्णिमाका रास हुवा, तब गोपीजन अपने घर, परिवार और गांव छोड़ हमारे पास आयी थी।उन्होंने अपने लौकिक बंधन और लोकलाज छोड़ दिए थे. क्या आप ऐसे कर सकते हो ?".
रुकमणीजी बोली, "प्रभु हमें आप के आलावा किसीका डर नहीं हे , इस बार आप जबी वेणुनाद करोगे, तब हम अवश्य आएंगे".
एकबार प्रभुने रात्रि के समय, गोपी तलावपे वेणुनाग किया। जिसे सुनकर रकमणीजी और सोलहजार और आठ रनिया महल से पधारने लगे. पर जबवे द्वारपर उग्रसेनजी को देखा तो लज्जितहो वापसी लौट गई.
दूसरी और यह वेणुनाद गोपीजनोंने ब्रजमें सुना, और वे अपने स्थानोंसे वेणुध्वनिकी और चलने लगी. प्रभुने गोपियोंके आगमन बाद गोपी तलावपे महारास किया। इसीलिए यह स्थान का नाम गोपी तलाव हे और यहाकि रजको गोपीचन्दन कहते हे.
यह प्रसंग सुन श्री महाप्रभुजीके सेवक कृष्णदासजीने विनती की , "प्रभु कृपाकर हमें इस दिव्या लीलाके दर्शन कराइये।".
श्री आचार्यजीने अपने सेवको दिव्य दृष्टिदे महारासके दर्शन करवायें।यह लीलामें सभी सेवक तन्मयहो गए , तब आपश्रीने सबको सावधान किया और श्री भगवतपरायण किया।
२००१में यह बैठकजी भूंकपसे नस्टहो गयी थी, परन्तु श्री तिलकायत महाराज और नाथद्वारा टेम्पलबोर्डके अध्यक्षतामें पुननिर्मान हुवा।