श्री महाप्रभुजी का बैठकजी नागमती नदी के तट पर बिराजमान है। श्री गुंसाईजी का बैठकजी भी यहाँ श्री महाप्रभुजी के पास बिराजमान है।
जब श्री महाप्रभुजी यहाँ आए थे तब यह कोई बड़ा शहर नहीं था। श्री महाप्रभुजी यहाँ छोंकर के पेड़ के नीचे नागमती नदी के किनारे बिराजे थे। आपश्री ने यहाँ श्रीमद् भागवत पारायण भी किया। इस क्षेत्र के राजा जाम तमाची श्री महाप्रभुजी के आगमन की खबर सुनकर, तुरंत दर्शन के लिए आए। राजा ने कहा, “महाराज, यह मेरा सौभाग्य है कि मैं आज आपका दर्शन कर सका। आपके दर्शन मात्र से ही मेरी बुद्धि निर्मल हो गई। आपके चरण स्पर्श से इस धरती पवित्र हो गई। इसलिए, कृपया मुझे आपकी शरण में ले। ” श्री महाप्रभुजी ने उनको अपनी शरण में लिया।
राजा ने आपश्री के आगे यहाँ एक शहर विकसित करने की इच्छा व्यक्त की। श्री महाप्रभुजी ने उन्हें आशीर्वाद दिया और कहा कि आज उनके लिए सबसे अच्छा मुहूर्त है, इसलिए कृपया बिना देरी के आज ही काम चालू करे।
यहाँ शहर में श्री व्रजभूषणलालजी महाराजश्री की एक बड़ी हवेली है, जिसमें श्री गदाधरदासजी के सेव्य श्री मदनमोहनजी बिराज रहे हैं। भगवान का यह स्वरुप श्री मदनमोहनजी के रूप में बहुत विशिष्ट है। गदाधरदासजी ने एक बार भोग धरने के लिए कुछ नहीं होने के कारन पूरा दिन जल का लोटा ठाकोरजी को भोग में दिया था। इस कारन, शाम को वह बहोत दुखी थे। लेकिन, श्री मदनमोहनजी की कृपा से उनके पास आए एक अतिथि ने उन्हें दक्षिणा के रूप में कुछ सोने के सिक्के दिए। तुरंत, श्री गदाधरदास बाज़ार गए और ताज़ा जलेबी लेकर आए और फिर ठाकोरजी को भोग अर्पण किया। भगवान भी उसकी यह भावना से बहोत खुश हुए और उन्होंने चार हाथ बनाकर भोग खाया। भगवान का यह रूप उस दिन से चतुर्भुज के रूप से जाना जाता है।