- उत्कृष्ट प्रकार
- मध्यम प्रकार
- हीन प्रकार
यह बैठकजी मच्छु नदी के तट पर स्थित हैं।
यह बैठकजी का एक दिलचस्प इतिहास है। सन 1788 में (विक्रम संवत 1845), गो.श्री बच्छा महाराज, श्री रुक्मणि बहूजी के साथ गोंडल पहुंचे और प्रगट होने वाले लाल ने सपने में मोरबी पधारने की आज्ञा दी। मोरबी में लालन का प्रागट्य हुआ। उनका नाम श्री जीवणजी रखा गया। सवा महीने के लालन ने माँ को रथ चलाने की आज्ञा दी और रथ बिना किसी सारथि के चला। जिस स्थान पर यह रथ रुका, वहां यह बैठकजी प्रगट हुए। श्री महाप्रभुजी के कुछ बैठकजी, उनके समय से प्रसिद्ध हैं और मोरबी जैसे अन्य बैठकजी श्रीकृष्ण की कृपा से इस तरह प्रगट हुए हैं।
श्री महाप्रभुजी मोरबी पहुँचे और नदी के तट पर कुछ दिन रहे। उन्होंने श्री कृष्णदास मेघन से कहा, "प्राचीन समय में, इस शहर को मयुरध्वज नाम के राजा ने बसाया था। इसलिए, इस शहर का नाम इस राजा के नाम पर से रखा गया था। यह राजा बहुत ही सत्यवादी होने के साथ-साथ भगवद भक्त भी था। भगवान श्रीकृष्ण भी अर्जुन के साथ इस स्थान पर आए थे। इसलिए, ऐसे पवित्र स्थान पर हमें श्रीमद भागवत सप्ताह अवश्य करना चाहिए।"
श्री महाप्रभुजी के यहाँ रहने के दौरान, बाला और बादा नाम के दो पुष्कर ब्राह्मण भाई इस गाँव में रहते थे। वे दोनों श्री महाप्रभुजी के दर्शन करने आए। वे दोनों लीला के दैवी जिव होने के कारण, श्री महाप्रभुजी ने उन्हें साक्षात् पूर्ण पुरुषोत्तम के स्वरुप में दर्शन दिए। जैसे ही दर्शन हुए, उन दोनों की एकादश इन्द्रिय निर्मल हो गई। उन्होंने कहा, “महाराज, हम लंबे समय से इस भवसागर में भटक रहे हैं। कृपया, हमारा उद्धार करें। " श्री महाप्रभुजी ने उन्हें स्नान करने की आज्ञा दी और 'नामनिवेदन मंत्र' देके उनको अपने सेवक बना लिए। श्री महाप्रभुजी ने उनके नाम बाला और बादा से बदलके क्रमशः श्री बालकृष्णदास और श्री बादरायणदास रखे। उनकी कहानी '84 वैष्णवों की कहानी ' पुस्तक में प्रसिद्ध है। श्री महाप्रभुजी ने उन्हें पुष्टिमार्ग के सभी ग्रंथ सिखाए। उन्होंने आप से भगवद सेवा देने का अनुरोध किया और श्री महाप्रभुजी ने उन्हें श्री बालकृष्णलालजी की सेवा प्रदान की।
यह प्रसंग हमें दैवी जिव के विभिन्न रूपों के बारे में जानकारी देता है। श्री महाप्रभुजी से लेकर अब तक के गोस्वामी बालको ने कई दैवी जीवो को अपने शरण में लिए है। 'सिद्धांत रहस्य' में अपनी टिप्पणी में श्री लालू भट्टजी ने हमें दैवी जिव के प्रकारों के बारे में समझाया हैं, कि तीन प्रकार के दैवी जिव हैं:
श्री महाप्रभुजी ने 'नवरत्न' ग्रंथ में इन तीनों प्रकार के जिव की व्याख्या करते हुए कहा है की: जो जिव पहले प्रयास पर अलौकिक (भगवान) स्वरुप के दर्शन कर सके वे उत्कृष्ट प्रकार के जिव। जो जिव श्री महाप्रभुजी के साथ शास्त्रचर्चा करने के लिए आए और शास्त्रचर्चा के ज्ञान द्वारा जिसने श्री महाप्रभुजी के अलौकिक स्वरूप को समझा और उसकी शरण में आए, वे जिव (ज्ञानात) मध्यम प्रकार के जिव। जो जिव वंशानुगत वैष्णव संस्कारों से किसी भी रूप की समझ के बिना गतानुगतिक तरीके से प्रभु की शरण में आए, वे हीन प्रकार (अज्ञानात) के जिव। लेकिन, इन तीनों प्रकार के जीवों का भगवान ने श्री महाप्रभुजी द्वारा अंगीकार किया है।
सन 1979 में, मच्छु बांध टूट गया और बाढ़ का पानी बैठकजी और उसके आसपास के 30-40 किमी क्षेत्र में बह गया। क्षतिग्रस्त बैठकजी का नव निर्माण 'श्री वल्लभ मेमोरियल ट्रस्ट' द्वारा गठित 'श्री पुष्टिमार्गीय वैष्णव संकट सहाय समिति' की मदद से सौराष्ट्र के विभिन्न गोस्वामी बालको और वैष्णवों द्वारा किया गया। सभी नई सुविधाओं के साथ पुरे बैठकजी का नवीकरण किया गया था।