मूलगोमता

    श्री महाप्रभुजी पीपल के वृक्ष के निचे बिराजे. तब कृष्णदास मेघनने प्रश्न किया की "प्रभु यह स्थान का नाम मूलगोमता क्यों हे " उत्तर देते आपश्री बोले " सभी तीर्थ वैंकुंठमें आधिदैविक स्वरूप से बिराजते हे।परंतु भूतल पर यही तीर्थ अधिभौतिक रूप से हे। जब गोमतीजी भूतल पर पधारी तब स्थानी राजा की पुत्री के रूप में अवतरीत हुई. उनका मनोरथ प्रभु से विवाह का था. तब श्री द्वारकानाथजी ने उनसे द्वारका नदी रूप से पधारने को कहा. और प्रभुके सागर स्वरुप से मिलकर अपना मनोरथ सिद्ध  किया. आज भी गोमतीजी नदी रूप से द्वारकजीमें स्थित हे , और प्रभु के चरणारविन्द में बिराज रही हे. इसीलिए ये स्थान का नाम मूलगोमता हे.

     

    दूसरे दिन एक सन्यासी श्री महाप्रभुजी के शरण आया, और विनती की , "महाराज में दक्षिण देश से आया हु, और विष्णु स्वामी का शिष्य हूँ." मेरा पूरा परिवार हरी शरण हुवा हे. में श्री द्वारकिनाथजी के नित्य दर्शन कर, श्री भगवत का पथ का नियमित पथ करता हु. मृत्यु चार बार मुझे लेने आयी , पर मुझे स्पर्श ना कर सकी. अंत में श्री द्वारकाधीशजीने मुझे दर्शन दिए और वर मांगने को कहा. मेने प्रभुसे श्रीगिरिराजी के टरेटी में निवास माँगा, और प्रभु के बाल लीला के दर्शन की अभिलाषा की. उत्तर देते प्रभु बोले, "यह वर देना असम्भ हे , परन्तु श्री वल्लभाचार्यजी की कृपा से आपका यह मनोरथ सिद्ध होगा".

     

    सन्यासी बोले ,"पिछले रात्रि श्री द्वारकाधीशजी ने मुझे आज्ञा की , के कल सबेरे श्रीमहाप्रभुजी यहाँ पधारेंगे ,और आप उनके शरणमें जाना. इसलिए में आपके पास आया हु".

     

    श्री महाप्रभजीने आज्ञा की,"सन्यासी तुम प्रभु के आश्रय के बदले, सांसारिक माया से ब्रमित थे, इसलिए तुम इतना विलंभ हुवा। परन्तु अब तुम  स्नान कर आओ और फिर श्रीआचार्यजीने सन्यासी को अपना सेवक बनाया." उसके बाद आपश्री ने श्री भगवत परायण किया, और समापन के बाद आपश्री ने सन्यासी से आज्ञा की," आज से तीसरे दिन तुम्हारी मृत्यु होगी, और श्रीगिरिराजजी के तरेहेति में हरजी ग्वाल के रूप से तुम्हारा नया जनम होगा. श्रीविठलनाथजी तुमे अपना सेवक बनायेगे, और कृतार्थ करेंगे.

     

    आज तक , श्री गिरिराजी के तरेहटी में हरजी कुंड , हरजी ग्वाल के नाम से स्थित हे. और श्री आचार्यजी के सिद्धांत अनुसारप्रभु जिसपर कृपा बरसाए ,वही आपको प्राप्त कर सकता हे।

     

    २००१, भूंकप के वश यह बैठकजीको भारी क्षति पोचीथी।  श्री हरसाणी ट्रस्ट द्वारा और तिलकायत राकेशजी के सयोग से बैठकजी का पूण निर्माण हुवा


This page was last updated on 11 मार्च 2020.