दिनांक: शनिवार, 14 सितंबर 2024
अन्य नाम: वामन, परिवर्तिनी या पार्श्व एकादशी
पुष्टिमार्ग में दान एकादशी का विशेष महत्व है। इस दिन गोपीजनों और श्री कृष्ण के बीच अद्भुत दान लीला हुई थी। प्राचीन समय में राजा अपने राज्य में सभी प्रजाजनों से विक्रय योग्य वस्तुओं पर दान (जिसे अब उत्पाद शुल्क या कर कहा जाता है) लिया करते थे। व्रज में, श्री नंदरायजी राजा थे। इसलिए श्री ठाकोरजी वहाँ रहने वाले सभी लोगों से दान ले सकते थे।
उस समय व्रज के लोग मुख्यतः दही, मक्खन, और घी जैसे दुग्ध उत्पाद बेचकर (मुख्यतः मथुरा जैसे बड़े नगरों में) अपनी आजीविका चलाते थे। इसी से वे अपना दान भी चुकाते थे। दान देने की इस प्रथा को समाप्त करने के लिए श्री ठाकोरजी ने (अपने मित्रों और वानरों के साथ) व्रज की महिलाओं के दही के मटकों को फोड़ दिया और उनका दही लूट लिया। इस प्रकार व्रज से मथुरा को इन उत्पादों का निर्यात बंद हो गया।
इस लीला के पीछे श्रीठाकोरजी का केवल उद्देश्य व्रजवासियों में अपने प्रति विश्वास और श्रद्धा को विकसित करना था। श्री ठाकोरजी दान लीला में यह संदेश देते हैं, “अपनी सभी इन्द्रियों को मुझे दान करो। हर समय अपनी आँखों से मेरा दर्शन करो, अपनी जीभ से मेरा नाम जपो, और अपने कानों से भगवद कथा व मेरी लीलाओं को सुनो। मैं केवल तुम्हारे हृदय और आत्मा का दान माँग रहा हूँ।”
श्री गुसाईजी ने "दान लीला" नामक पुस्तक लिखी है और इस पुस्तक में मुख्य पात्र श्री चंद्रावलीजी हैं। वे द्वितीय स्वामिनीजी के नाम से प्रसिद्ध हैं। दूध स्वामिनीजी का अधरामृत है और दही श्री चंद्रावलीजी का अधरामृत है। अत: हमें श्री ठाकोरजी को राजभोग में दही का भोग लगाना चाहिए।